Wednesday, May 1, 2024
No menu items!
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
HomeBjpजौनापुरिया को गम्भीरता चाहिए! असफलता को थोपना दुखद!!

जौनापुरिया को गम्भीरता चाहिए! असफलता को थोपना दुखद!!

(विचार-प्रवाह)

राजेन्द्र बागड़ी, वरिष्ठ पत्रकार


Political Report. 17 अप्रेल ( दैनिक ब्यूरो नेटवर्क) निवर्तमान भाजपा सांसद व  बीजेपी प्रत्याशी सुखबीर जौनापुरिया भले ही 10 वर्ष तक सांसद रहे हो, लेकिन उनमें गम्भीरता, संयम की कमी जरूर है। ये भी सच है कि हरियाणा से आकर वे प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर भले ही जीत गए लेकिन संसदीय क्षेत्र के लोगों को उपलब्धि बताने के लिए उनके पास कुछ नही है।

यहाँ तक वे 10 वर्षो तक मोदी की उपलब्धियो का गुणगान भी नही कर पाए। फिर भी पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया! ये आश्चर्यजनक है। बीते दिनों कांग्रेसी प्रत्याशी हरिश्चन्द्र मीना और उनके बीच जिस तरह व्यक्तिगत बयानबाजी हुई, उससे से साफ लगता है। जौनापुरिया संयम खो बैठे है या धैर्य खत्म हो गया है। जौनापुरिया को याद रखना चाहिए कि वे वरिष्ठ सांसद है और उनके दिए बयान का असर काफी दूर तक जाता है। इस वक्त तो ये इसलिए भी भारी पड़ रहा है कि क्षेत्र में उन्हें क़ई स्थानों पर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। व्यक्तिगत बयानबाजी कांग्रेसी प्रत्याशी हरिश्चन्द्र मीना ने भी की। चपरासी, हिस्ट्रीशीटर वाले बयान राजनीति को शर्मसार करते है।

ये याद रखना चाहिए कि शब्दों से आपके चरित्र का अनुमान लगता है। चुनाव के दौरान कटुता भरे ये तीर मतदाताओं को जरूर घायल करेंगे। जिस तरह से बीते दिनों ये कटुता देखने को मिली, ये वाकई निंदनीय है। जौनापुरिया ने भी तीखे और भद्दे बयान दिए। लोकसभा चुनाव पार्टी की नीतियों, रीतियों, नेतृत्व के मुद्दों पर लड़े जाते है न कि व्यक्तिगत वेमस्यता के आधार पर। यदि कोई कटुता भरी आलोचना भी करें तो उसकी उपेक्षा ही की जानी चाहिए लेकिन जिस तरह से प्रतिक्रिया निकली है, उससे लगता है कि मीना भी व्यक्तिगत आधार पर चुनाव लड़ रहे है और जौनपुरिया भी! पार्टियों के मुद्दे धरातल पर रह गए और शब्दों के हमले मुद्दे बन गए है। जौनापुरिया का संसदीय क्षेत्रों में यदि लोगों ने विरोध किया है तो वह सही मायनों में ठीक भी है। दस साल तक सांसद रहकर भी यदि जनता को भूल जाओ तो चुनाव में जनता आपको हार पहनाएगी, ये भूल जाना चाहिए।

जौनापुरिया मोदी के नाम पर दो बार जीते है तो कम से कम केंद्र की योजनाओं की जानकारी ही क्षेत्र में जाकर दे देते तो भी ठीक था पर वे तो क्षेत्रों का रुख करना ही भूल गए। कार्यकर्ताओं को भूल गए! आम मतदाता को भूल गए। किसी भी प्रत्याशी को ये नही भूलना चाहिए कि आप जुगाड़ कर पार्टी का टिकट तो ला सकते है पर हार-जीत आप तय नही कर सकते। अगर आपका विरोध सामने आ रहा है तो कमी आपकी ही रही होगी। जातिवाद से न कोई जीता है और न हारा है। कुछ हद तक कुछ जातियों की बहुलता टिकट का जरिया जरूर बनती है। लेकिन जीत नही दिला सकती। विरोध को समझिए! आपने जैसा बोया वहीं काटना पड़ता है। देश में बीजेपी के लिए मोदी एक मिशन है तो फिर जुबान क्यो लडख़ड़ा रही है। पार्टी ने दोनो प्रत्याशियों पर भरोसा कर टिकट थमाए है तो उम्मीदे भी रही होगी। जौनपुरिया ने फिर एक नया बयान देकर मुसीबत मोल ले ली है, जिसमे वे मीडिया पर कटाक्ष करते दिख रहे है।

मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। प्रत्याशी उलट बंशी बजायेगा तो मीडिया भी वही लिखेगा न कि बंशी को सीधा करेगा। उल्टी बंशी बजाने वालों की बंशी जनता-जनार्दन ही छीन लेता है। मीडिया पर अपनी बौखलाहट थोपने का मतलब है कि प्रत्याशी ने आत्मचिंतन नही किया। अहंकार से मतदाताओं को डराया, धमकाया नही जाता! मीडिया को कोसने से पहले यदि सोचकर बोला होता तो शायद ये स्थिति नही आती। वहीं 22 अप्रेल को प्रधानमंत्री मोदी संसदीय क्षेत्र के मध्य में उनियारा रैली करने आ रहे है, हो सकता है वे डेमेज को नियंत्रित कर जाएं! लेकिन ये बात याद रखिए कि आखरी फैसला जनता करती है।

ये चुनाव देश के लिए महत्वपूर्ण है। पार्टी नेतृत्व की भी परीक्षा है। दोनो प्रत्याशी मतदाताओं के राडार पर है। एक को जीतना है। अगर प्रत्याशियों में अगर मुगालता हो तो अपने व्यक्तित्व पर चुनाव लड़ ले, जनता बता देगी कि आपका लेवल क्या है! टोंक- सवाईमाधोपुर सीट पर दोनो पार्टियों का लक्ष्य कांटे का है। हार-जीत का अंतर काफी कम रहने वाला है। कम से कम पिछला जीत का आंकड़ा तो छू ले तो बड़ी बात होगी।

यहां से पढ़े खबर

पत्रकार संगठनों ने भाजपा प्रत्याशी के बयान की निंदा की…

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

%d